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ये सवाल अक्सर उठते रहते हैं, खासकर हाल ही में एलन मस्क की पोस्ट के बाद।
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EVM एक उपकरण है जिसका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक रूप से वोटों को रिकॉर्ड करने के लिए किया जाता है।
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पहली बार वर्ष 1982 में केरल के परवूर विधानसभा क्षेत्र में EVM का प्रयोग हुआ था।
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EVM पर कई बार आरोप लगे हैं कि इन्हें हैक किया जा सकता है। हालांकि, आज तक कोई भी इन आरोपों को साबित नहीं कर पाया है।
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चुनाव आयोग ने VVPAT (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल) सिस्टम को पेश किया है, जो EVM में पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ाने के उद्देश्य से है।
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अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली EVM सर्वर से कनेक्ट होती है और इन्हें इंटरनेट के जरिए ऑपरेट किया जाता है, जिससे इन्हें हैक करना आसान हो जाता है।
अमेरिका और भारत में EVM का अंतर:
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भारत में EVM स्टैंड-अलोन मशीनें होती हैं, जिनमें VVPAT भी शामिल होती है और किसी भी नेटवर्क या मीडिया से कनेक्ट नहीं होतीं। इससे EVM की पारदर्शिता और विश्वासनीयता बढ़ती है।
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अमेरिका में कई EVM पर पेपर ट्रेल नहीं होती, जिससे गड़बड़ी के आरोप लगने पर क्रॉस चेक करना मुश्किल हो जाता है।
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2020 के राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसे ही आरोप लगे थे, लेकिन जहां-जहां पेपर ट्रेल थी, वहां नतीजे सही पाए गए।
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भारतीय EVM में एक माइक्रोप्रोसेसर होता है जिसे केवल एक बार प्रोग्राम किया जा सकता है और फिर बदला नहीं जा सकता।
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भारतीय EVM दो सार्वजनिक क्षेत्रीय इकाइयों (PSUs) ECIL और BEL द्वारा निर्मित होते हैं। सुरक्षा के लिए सॉफ्टवेयर को रक्षा मंत्रालय और परमाणु ऊर्जा मंत्रालय के इंजीनियर बनाते हैं।
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अमेरिकी वोटिंग सिस्टम में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) का उपयोग आमतौर पर नहीं होता है और वे पारंपरिक बैलट बॉक्स पर निर्भर करते हैं।
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Election Commission of India (ECI) के अनुसार, EVM को हैक करना नामुमकिन है।