Asaduddin Owaisi का ‘जय फिलिस्तीन’ नारा: क्या संसद के नियमों का उल्लंघन?

Asaduddin Owaisi Raises Jai Palestine slogans in parliament

नई दिल्ली: मंगलवार, 25 जून को संसद सत्र के दूसरे दिन सांसदों के शपथ ग्रहण के दौरान विभिन्न नारों ने संसद में जोरदार हंगामा खड़ा कर दिया। शपथ लेने वाले सांसदों में हैदराबाद से AIMIM के सांसद Asaduddin Owaisi भी शामिल थे, जिनके ‘जय फिलिस्तीन’ कहने पर सत्ता पक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई।

विवाद का कारण

ओवैसी ने शपथ लेने के बाद “जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन, तकबीर अल्ला-हु-अकबर” कहा, जिसके बाद उन्होंने प्रोटेम स्पीकर से हाथ मिलाया। सत्ता पक्ष के सांसदों ने इस नारे पर आपत्ति जताई और इसे संसद के नियमों के खिलाफ बताया। भाजपा सांसद बिप्लब कुमार देब ने कहा, “शपथ के दौरान किसी अन्य देश का जिक्र करना उचित नहीं है। ओवैसी ने ‘जय फिलिस्तीन’ कहा, जबकि उन्हें ‘भारत माता की जय’ कहना चाहिए था।”

भाजपा की प्रतिक्रिया

केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा, “AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने आज संसद में जो ‘जय फिलिस्तीन’ का नारा दिया, वह बिल्कुल गलत है। यह सदन के नियमों के खिलाफ है।” केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा, “फिलिस्तीन या किसी अन्य देश से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है। शपथ लेते समय क्या किसी सदस्य के लिए दूसरे देश की प्रशंसा में नारा लगाना उचित है? हमें नियमों की जांच करनी होगी।”

भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 का एक अंश पोस्ट किया, जिसमें संसद सदस्य के रूप में अयोग्यता के आधार निर्धारित होते हैं। उन्होंने कहा, “मौजूदा नियमों के अनुसार, असदुद्दीन ओवैसी को एक विदेशी राज्य, यानी फिलिस्तीन के प्रति निष्ठा दिखाने के लिए उनकी लोकसभा सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है।”

प्रोटेम स्पीकर का निर्देश

प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने कहा कि शपथ के अलावा कोई भी बात रिकॉर्ड में नहीं जाएगी। ओवैसी के नारे को रिकॉर्ड से हटाने का निर्देश दिया गया। उन्होंने सदस्यों को आश्वासन दिया कि केवल शपथ और प्रतिज्ञान ही रिकॉर्ड किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “मैंने पहले भी कहा है कि कृपया शपथ और प्रतिज्ञान के अलावा कुछ भी कहने से बचें। केवल इसे रिकॉर्ड किया जाना है, इसका पालन किया जाना चाहिए।”

Asaduddin Owaisi का पक्ष

मीडिया से बात करते हुए ओवैसी ने कहा, “मैंने जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना, जय फिलिस्तीन कहा। यह कैसे गलत है? मुझे संविधान का प्रावधान बताएं। महात्मा गांधी ने भी फिलिस्तीन के बारे में कहा था, इसे पढ़ें।” उन्होंने यह भी कहा कि फिलिस्तीन के लोग उत्पीड़ित हैं और उनका जिक्र करना गलत नहीं है। ओवैसी ने अपने X हैंडल पर पोस्ट किया, “पांचवीं बार लोकसभा के सदस्य के रूप में शपथ ली, इंशाअल्लाह, मैं भारत के हाशिए पर पड़े लोगों के मुद्दों को ईमानदारी से उठाता रहूंगा।”

कानूनी पहलू

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 के तहत, अगर कोई सांसद किसी अन्य देश के प्रति निष्ठा दिखाता है, तो उसकी सदस्यता अयोग्य ठहराई जा सकती है। भाजपा के एक पदाधिकारी ने दावा किया कि ओवैसी को “एक विदेशी देश के प्रति निष्ठा दिखाने” के लिए लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराया जा सकता है।

शपथ ग्रहण के नियम

संसद के नियमों के अनुसार, सांसद को शपथ के दौरान केवल शपथ का पाठ करना चाहिए और किसी भी अन्य बात का जिक्र नहीं करना चाहिए। प्रोटेम स्पीकर ने स्पष्ट किया कि शपथ के अलावा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं जाएगा। Asaduddin Owaisi के ‘जय फिलिस्तीन’ कहने पर सत्ता पक्ष के सांसदों ने जोरदार हंगामा किया, जिसके बाद सभापति राधा मोहन सिंह ने सदस्यों को आश्वासन दिया कि शपथ के अलावा कोई भी बात रिकॉर्ड में नहीं जाएगी।

विविध नारों का प्रयोग

Asaduddin Owaisi के अलावा, अन्य सांसदों ने भी शपथ के दौरान विभिन्न नारों का प्रयोग किया। राहुल गांधी ने शपथ के बाद ‘जय हिन्द’ और ‘जय संविधान’ का नारा लगाया। बरेली से भाजपा सांसद छत्रपाल गंगवार ने ‘हिन्दू राष्ट्र की जय’ का नारा लगाया। अयोध्या से सपा सांसद अवधेश राय ने शपथ ली तो ‘जय अयोध्या, जय अवधेश’ के नारे लगे। हेमा मालिनी ने शपथ की शुरुआत ‘राधे-राधे’ से की।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्ष ने इस विवाद पर चुप्पी साधी हुई है। ओवैसी के नारे पर उठे विवाद के बावजूद, विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर कोई खास प्रतिक्रिया नहीं दी है। कुछ विपक्षी नेताओं ने निजी बातचीत में इसे ओवैसी का व्यक्तिगत मामला बताया और कहा कि संसद में नारों का प्रयोग सामान्य बात है।

Asaduddin Owaisi के ‘जय फिलिस्तीन’ नारे ने संसद में तीव्र विवाद उत्पन्न किया है। जहां एक ओर ओवैसी इसे उचित ठहरा रहे हैं, वहीं भाजपा इसे असंवैधानिक और नियमों के खिलाफ मान रही है। इस विवाद ने शपथ ग्रहण के दौरान नारों के इस्तेमाल पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है, जिसे निपटाने के लिए संसद को नियमों की पुन: समीक्षा करनी होगी। इस विवाद ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संसद के नियमों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे विवादों से बचा जा सके।

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