भारतीय EVM vs अमेरिकी EVM: बड़ा फर्क

Indian EVM vs American EVM

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) पर सवाल खड़े हो रहे हैं, क्या ये भारतीय लोकतंत्र के लिए सही हैं या हमें पेपर बैलेट की ओर लौटना चाहिए?

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भारतीय चुनाव प्रणाली का अहम हिस्सा बन चुकी हैं। इनकी भूमिका और विश्वसनीयता को लेकर समय-समय पर विवाद भी होता रहा है। क्या EVM को हैक किया जा सकता है? क्या इनसे चुनाव परिणाम प्रभावित हो सकते हैं? ये सवाल अक्सर उठते रहते हैं, खासकर हाल ही में एलन मस्क की पोस्ट के बाद।

EVM का परिचय और विकास

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन दो यूनिटों से मिलकर बनी होती है: कंट्रोल यूनिट और बैलट यूनिट। कंट्रोल यूनिट पीठासीन अधिकारी के पास रखी जाती है और बैलट यूनिट मतदाता के लिए उपलब्ध होती है। मतदाता बैलट यूनिट पर उम्मीदवार के नाम के सामने बटन दबाकर अपना वोट डालते हैं।

ईवीएम का इतिहास

ईवीएम का इतिहास 1980 से शुरू होता है जब एम. बी. हनीफा ने पहली बार इसे बनाया था। 1982 में केरल के उत्तर परवूर में इसका पहला प्रयोग किया गया। इसके बाद 1998 में 16 विधानसभा सीटों पर और 1999 में 46 लोकसभा सीटों पर इसका विस्तार हुआ। 2004 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर EVM का उपयोग हुआ।

विवाद और आरोप

EVM पर कई बार आरोप लगे हैं कि इन्हें हैक किया जा सकता है। हालांकि, आज तक कोई भी इन आरोपों को साबित नहीं कर पाया है। इसके बावजूद, इन विवादों के चलते चुनाव आयोग ने VVPAT (वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रायल) सिस्टम को पेश किया है। VVPAT का उद्देश्य ईवीएम में पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ाना है।

एलन मस्क और रॉबर्ट एफ केनेडी का बयान

हाल ही में एलन मस्क ने रॉबर्ट एफ केनेडी जूनियर के पोस्ट को रिपोस्ट करते हुए लिखा कि EVM का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए। रॉबर्ट ने दावा किया था कि प्यूर्टो रिको में ईवीएम के उपयोग से अनियमितताएं पाई गई थीं। इस पर भारत के आईटी मंत्री रहे राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि भारतीय ईवीएम को हैक नहीं किया जा सकता क्योंकि ये किसी नेटवर्क या मीडिया से कनेक्ट नहीं होतीं।

EVM की सुरक्षा और तकनीकी पहलू

भारतीय EVM स्टैंड-अलोन मशीनें होती हैं, जो किसी कंप्यूटर या इंटरनेट से कनेक्ट नहीं होतीं। इनमें फैक्ट्री प्रोग्राम्ड कंट्रोलर्स होते हैं, जिन्हें फिर से प्रोग्राम नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग के अनुसार, इन मशीनों को हैक करना नामुमकिन है।

VVPAT की भूमिका

VVPAT का उद्देश्य मतदाता को यह विश्वास दिलाना है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को गया है। VVPAT की स्क्रीन पर 7 सेकंड तक पर्ची दिखती है, जिससे मतदाता अपने वोट की पुष्टि कर सकते हैं। अगर ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप लगता है, तो VVPAT की पर्चियों से क्रॉस चेक किया जा सकता है।

अमेरिका और भारत में EVM का अंतर

अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली EVM सर्वर से कनेक्ट होती हैं और इन्हें इंटरनेट के जरिए ऑपरेट किया जाता है, जिससे इन्हें हैक करना आसान हो जाता है। भारत में EVM स्टैंड-अलोन मशीनें होती हैं, जिनमें VVPAT भी शामिल होती है। इससे ईवीएम की पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ती है।

अमेरिकी चुनाव प्रणाली में समस्याएं

अमेरिका में कई ईवीएम पर पेपर ट्रेल नहीं होती, जिससे गड़बड़ी के आरोप लगने पर क्रॉस चेक करना मुश्किल हो जाता है। 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में भी ऐसे ही आरोप लगे थे, लेकिन जहां-जहां पेपर ट्रेल थी, वहां नतीजे सही पाए गए।

निष्कर्ष

भारतीय EVM पर सवाल उठाना एक लंबी बहस का हिस्सा है। हालांकि, भारतीय चुनाव आयोग और सरकार ने ईवीएम की सुरक्षा और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिए कई कदम उठाए हैं। VVPAT जैसी तकनीकें इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।

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